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कोलकाता में ‘रंगभूमि’ के 100 साल: प्रेमचंद की कालजयी कृति पर हिंदी समाज का अनोखा आयोजन

कोलकाता। प्रेमचंद की कालजयी रचना ‘रंगभूमि’ के प्रकाशन को 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इस ऐतिहासिक अवसर को चिह्नित करने के लिए पश्चिम बंगाल के हिंदीभाषियों ने एक अनूठा कदम उठाया है। वेस्ट बंगाल हिंदी स्पीकर्स सोसाइटी कोलकाता में इस उपन्यास की शताब्दी पर एक विशेष सेमिनार का आयोजन कर रही है।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान को स्मरण करना और ‘रंगभूमि’ की आज की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों में प्रासंगिकता को समझना है।

यह दुर्लभ है जब किसी उपन्यास की शताब्दी को सार्वजनिक आयोजन के रूप में मनाया जाए। आम तौर पर व्यक्ति विशेष, आंदोलन या ऐतिहासिक घटनाओं की शताब्दियां मनाई जाती हैं, परंतु इस पहल के ज़रिए हिंदीभाषी समाज ने साहित्य को सामाजिक चेतना से जोड़ने का एक सकारात्मक प्रयास किया है।

‘रंगभूमि’ का महत्व

1924 में प्रकाशित ‘रंगभूमि’ को प्रेमचंद की सबसे वैचारिक और सामाजिक चेतना से युक्त रचनाओं में गिना जाता है। इस उपन्यास के केंद्रीय पात्र सूरदास एक दृष्टिहीन लेकिन आत्मबल और नैतिकता से परिपूर्ण व्यक्ति हैं, जो पूंजीवाद, औद्योगिक अत्याचार और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। यह उपन्यास शोषण के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बन चुका है और आज के संदर्भ में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।

सेमिनार की रूपरेखा

कोलकाता के हिंदी भवन में आयोजित इस सेमिनार में राज्य भर से प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद, छात्र और हिंदी प्रेमी शामिल होंगे। आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यसेवी डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल करेंगे। मुख्य वक्ता होंगे प्रो. शारदा प्रसाद मिश्र, जो कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष हैं। इसके अलावा हिंदी शिक्षकों और लेखकों की कई महत्वपूर्ण प्रस्तुतियां भी होंगी।

चर्चा के मुख्य बिंदु

रंगभूमि और आज का समाज

प्रेमचंद की दृष्टि और समकालीन राजनीति

हिंदी साहित्य में सामाजिक परिवर्तन की भूमिका

बंगाल में हिंदी भाषा की स्थिति और भविष्य

आयोजकों की प्रतिक्रिया

अनिल कुमार गुप्ता, जो हिंदी स्पीकर्स सोसाइटी के सचिव हैं, ने बताया, “हम प्रेमचंद जैसे लेखक को केवल पढ़ते नहीं, जीते हैं। ‘रंगभूमि’ जैसे उपन्यास हमें बताते हैं कि साहित्य समाज के परिवर्तन का माध्यम हो सकता है।”

कार्यक्रम समिति की सदस्य डॉ. कविता सिन्हा ने बताया कि यह आयोजन खासकर युवा पीढ़ी को हिंदी साहित्य की विरासत से जोड़ने की दिशा में एक प्रयास है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि बंगाल में रहने वाले हिंदीभाषी युवा प्रेमचंद की विचारधारा से प्रेरणा लें।”

बंगाल में हिंदी भाषा की स्थिति

पश्चिम बंगाल में हिंदीभाषियों की संख्या लाखों में है और कई क्षेत्रों में हिंदी बोलने वालों का मजबूत सामाजिक आधार है। कोलकाता, हावड़ा, आसनसोल, सिलीगुड़ी, दुर्गापुर जैसे शहरों में हिंदी स्कूल, पुस्तकालय और साहित्यिक संगठन सक्रिय हैं। वेस्ट बंगाल हिंदी स्पीकर्स सोसाइटी पिछले 30 वर्षों से राज्य में हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है।

प्रेमचंद की साहित्यिक विरासत

प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है। उनका लेखन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की चेतना जगाने वाला रहा है। गोदान, सेवासदन, निर्मला, कफन और रंगभूमि जैसे उपन्यासों में उन्होंने भारतीय समाज के भीतर छिपे शोषण, जातिवाद, गरीबी और अन्याय को उजागर किया। ‘रंगभूमि’ विशेष रूप से आज के सामाजिक संघर्षों के संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।

डिजिटल प्रचार और युवाओं की भागीदारी

सेमिनार की जानकारी को सोशल मीडिया पर भी फैलाया जा रहा है। #100YearsOfRangbhoomi और #PremchandInKolkata जैसे हैशटैग्स के माध्यम से युवाओं को जोड़ा जा रहा है। इस डिजिटल पहल का उद्देश्य है कि बंगाल के हिंदीभाषी युवा प्रेमचंद के विचारों से जुड़ें और उनके साहित्यिक अवदान को जानें।

निष्कर्ष

‘रंगभूमि’ की शताब्दी पर आयोजित यह सेमिनार केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि हिंदी भाषा और विचारधारा की पुनर्स्थापना का प्रयास है। यह आयोजन प्रेमचंद को श्रद्धांजलि भी है और एक प्रेरणा भी, जो हमें बताता है कि साहित्य केवल पढ़ने की वस्तु नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाला साधन है। कोलकाता के हिंदी समाज ने यह दिखा दिया है कि भाषा, संस्कृति और साहित्य की जड़ें कितनी गहरी और प्रभावशाली होती हैं।

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