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विधायक गौतम के इस आयोजन का उद्देश्य डॉ. भीमराव अंबेडकर और संत रविदास के योगदान को सम्मान देना बताया गया था। लेकिन स्थानीय लोगों ने कार्यक्रम की 'मंचीय सच्चाई' पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह केवल वोट बैंक को ध्यान में रखकर किया गया एक चुनावी हथकंडा था। मंच पर जहां सत्ताधारी दल के नेता और समर्थक मौजूद थे, वहीं संत रविदास समाज के किसी भी वरिष्ठ सदस्य, सामाजिक प्रतिनिधि या वक्ता को स्थान नहीं दिया गया। इससे रविदास समाज के लोगों में गहरा आक्रोश देखा गया।

चेनारी में रविदास समाज गायब, विधायक के मंच पर सिर्फ सियासत!

रोहतास, बिहार | 15 जून 2025:
चेनारी विधानसभा क्षेत्र के शिवसागर ब्लॉक में आयोजित संत शिरोमणि रविदास सम्मेलन-सह-सम्मान समारोह अब विवादों के घेरे में आ गया है। पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक मुरारी प्रसाद गौतम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में रविदास समाज की गैरमौजूदगी ने पूरे आयोजन की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कार्यक्रम के दौरान मंच पर रविदास समाज से कोई भी प्रतिनिधि नजर नहीं आया, जिससे क्षेत्र की जनता में भारी असंतोष देखने को मिला।

मंच पर नहीं दिखा रविदास समाज, सवालों के घेरे में आयोजन

विधायक गौतम के इस आयोजन का उद्देश्य डॉ. भीमराव अंबेडकर और संत रविदास के योगदान को सम्मान देना बताया गया था। लेकिन स्थानीय लोगों ने कार्यक्रम की ‘मंचीय सच्चाई’ पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह केवल वोट बैंक को ध्यान में रखकर किया गया एक चुनावी हथकंडा था।
मंच पर जहां सत्ताधारी दल के नेता और समर्थक मौजूद थे, वहीं संत रविदास समाज के किसी भी वरिष्ठ सदस्य, सामाजिक प्रतिनिधि या वक्ता को स्थान नहीं दिया गया। इससे रविदास समाज के लोगों में गहरा आक्रोश देखा गया।

“सम्मान समारोह में अगर समाज के प्रतिनिधि ही मंच पर नहीं होंगे, तो फिर ये कैसा सम्मान?”, — एक स्थानीय निवासी ने नाराज़गी जताई।

अंबेडकर मूर्ति अनावरण: राजनीतिक प्रतीक या सच्ची श्रद्धांजलि?

कार्यक्रम में डॉ. भीमराव अंबेडकर की एक नई मूर्ति का अनावरण भी किया गया। यह प्रतीकात्मक पहल भले ही महत्वपूर्ण थी, लेकिन आयोजन की पृष्ठभूमि को देखते हुए इसे भी राजनीतिक चाल करार दिया गया।
स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि यह पूरा आयोजन दलित मतदाताओं को लुभाने की रणनीति का हिस्सा था, न कि किसी सामाजिक सद्भाव या समानता के सच्चे इरादे से किया गया प्रयास।

“यह कार्यक्रम दिखावे की राजनीति का हिस्सा लगता है, जहां सम्मान से ज़्यादा प्रचार पर ज़ोर था,” — एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा।

जनता का गुस्सा फूटा: “विकास नहीं, सिर्फ प्रचार हुआ है”

कार्यक्रम के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा सड़कों तक पहुंच गया। कई लोगों ने कहा कि विधायक मुरारी गौतम का अब तक का कार्यकाल केवल उद्घाटनों और घोषणाओं तक सीमित रहा है।
सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, और युवाओं को रोजगार जैसी बुनियादी समस्याओं पर कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है।

“पांच साल में गांवों में एक भी इंटर कॉलेज नहीं खुला, अस्पताल की हालत बदतर है और नौकरी का नामोनिशान नहीं है,” — एक युवा ने मंच से दूर खड़े होकर कहा।

जनसंपर्क नहीं, केवल चुनावी संपर्क!

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि विधायक मुरारी गौतम ने अपने कार्यकाल में जनसंपर्क पर ध्यान नहीं दिया। लोगों का कहना है कि वे केवल चुनाव के समय ही क्षेत्र में सक्रिय दिखाई देते हैं।
लोगों ने यह भी कहा कि सम्मान समारोह जैसे आयोजन केवल चुनावी फायदे के लिए किए जा रहे हैं, ना कि समुदायों के सच्चे उत्थान के लिए।

“पांच सालों में कभी विधायक ने गांव की गलियों में कदम नहीं रखा, अब जब चुनाव पास है तो समाज की याद आ रही है,” — एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा।

विपक्ष का हमला: “दलितों की अनदेखी, दोहरा चेहरा उजागर”

इस पूरे मुद्दे को लेकर विपक्ष ने भी विधायक मुरारी गौतम पर निशाना साधा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि दलित समाज के नाम पर राजनीति करना और फिर उनके प्रतिनिधियों को मंच से दूर रखना दोहरे चरित्र का प्रतीक है।

“अगर विधायक सच में रविदास समाज के प्रति संवेदनशील होते तो उन्हें मंच से नहीं, समाज से जुड़कर कार्य करना चाहिए था,” — एक विपक्षी नेता ने प्रेसवार्ता में कहा।

राजनीतिक विश्लेषण: “चुनावी रणनीति का हिस्सा था यह आयोजन”

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि चेनारी विधानसभा क्षेत्र में दलित, रविदास और पिछड़े वर्ग की बड़ी संख्या है, जो चुनावी समीकरण को प्रभावित करते हैं।
ऐसे में मुरारी प्रसाद गौतम द्वारा यह आयोजन सीधे तौर पर इन वर्गों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

“यह एक प्री-इलेक्शन प्लानिंग है, जहां भावनाओं को वोट में बदलने की कोशिश की गई,” — पटना के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है।

निष्कर्ष:

चेनारी में हुए इस कार्यक्रम ने यह साबित कर दिया कि समाज के नाम पर मंच सजे जरूर हैं, लेकिन समाज की भागीदारी अब भी पीछे है। संत रविदास और डॉ. अंबेडकर के नाम पर सियासत करने वाले नेता अगर वास्तव में समाज को सम्मान देना चाहते हैं, तो उन्हें मंच साझा करने की परंपरा की शुरुआत करनी चाहिए, न कि सिर्फ कार्यक्रमों और उद्घाटनों तक सीमित रहना चाहिए।

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