रेलवे स्टेशन बना सेवा स्थल: डेहरी ऑन सोन में हर वीकेंड 400 लोगों को मुफ्त भोजन, बच्चों को मिल रही शिक्षा की रोशनी
डेहरी ऑन सोन (बिहार):
बिहार के डेहरी ऑन सोन रेलवे स्टेशन पर हर शनिवार और रविवार एक अनोखी मिसाल कायम हो रही है। स्टेशन परिसर अब सिर्फ ट्रेनों का ठहराव स्थल नहीं, बल्कि जरूरतमंदों के लिए उम्मीद की किरण बन चुका है। इस बदलाव का श्रेय जाता है Feeding Hope Foundation को, जिसकी अगुवाई कर रहे हैं संचालक राहुल सिंह।
इस फाउंडेशन के जरिए हर वीकेंड 400 से ज्यादा भूखे और बेसहारा लोगों को गरम, पौष्टिक और मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही, गरीब बच्चों को कॉपी, पेंसिल जैसी शैक्षणिक सामग्री देकर उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

Feeding Hope Foundation: उम्मीद से भर रहा पेट और भविष्य
Feeding Hope Foundation सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि मानवता की भावना का जीवंत उदाहरण है। इसका उद्देश्य है– “भूख से लड़ना और शिक्षा की लौ जलाना।”
राहुल सिंह द्वारा संचालित यह संगठन रोहतास जिले के पश्चिमी मोहन-बिगहा, वार्ड नंबर 17, देहरी-ऑन-सोन से कार्य कर रहा है। संगठन हर उस व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है जो भूख, गरीबी और लाचारी से जूझ रहा है।
फाउंडेशन के वालंटियर्स जरूरतमंदों को खोजते हैं, खाना पकाते हैं और स्टेशन के पास जाकर वितरण करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे Instagram, YouTube और Facebook पर भी यह मुहिम काफी लोकप्रिय हो रही है।
Instagram: @feedinghopefoundation_99
YouTube: Feeding Hope Foundation
Facebook: Feeding Hope Foundation
सेवा में जुटे युवाओं का समर्पण
इस प्रेरणादायक पहल में राहुल कुमार, अनुराग कुमार, विशाल कुमार, आशीष सर, अमित पटेल, धीरज कुमार, मोनू कुमार, बलजीत भाई, बिकाश भाई और शुदिर कुमार जैसे कई युवा शामिल हैं। ये सभी मिलकर हर सप्ताह राशन इकट्ठा करते हैं, खाना बनाते हैं और खुद स्टेशन पर जरूरतमंदों के बीच वितरित करते हैं।
राहुल कुमार कहते हैं, “हमने देखा कि बहुत से लोग स्टेशन पर भूखे सो जाते हैं। बस तभी तय किया कि कुछ करना है। आज हम सब मिलकर हर हफ्ते करीब 400 लोगों को खाना खिला रहे हैं।”
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भूख ही नहीं, शिक्षा की भी सेवा
इस समूह का फोकस सिर्फ भोजन तक सीमित नहीं है। वे गरीब बच्चों को पढ़ाई के लिए जरूरी संसाधन भी मुहैया करवा रहे हैं। स्टेशन और आसपास की झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को कॉपियाँ, पेन, पेंसिल और रबड़ जैसी सामग्री मुफ्त दी जाती है।
आशीष सर बताते हैं, “बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं, लेकिन उनके पास साधन नहीं होते। हम कोशिश करते हैं कि कम से कम लिखने-पढ़ने की चीजें तो उन्हें मिलें।”
बिना किसी फंडिंग के चल रही है यह मुहिम
इस सेवा अभियान की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई बड़ी संस्था या NGO नहीं है। सभी युवा आपसी सहयोग और अपनी मेहनत से इस काम को अंजाम दे रहे हैं। कोई सब्ज़ी लाता है, कोई चावल, कोई गैस सिलेंडर देता है—और इसी तरह सब मिलकर जरूरतमंदों के पेट भरते हैं।
“सेवा ही धर्म है”
अनुराग कुमार कहते हैं, “हम जाति, धर्म, अमीरी-गरीबी नहीं देखते। हमारा मकसद है—किसी का पेट भूखा न रहे और कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न हो।”
इस प्रयास को सोशल मीडिया और स्थानीय लोगों से भी समर्थन मिलने लगा है। लोग अब आगे आकर आटा, चावल या स्टेशनरी सामग्री दान कर रहे हैं।
फाउंडेशन के QR कोड के जरिए लोग Paytm, PhonePe या Google Pay से भी मदद कर सकते हैं।
📱 मोबाइल नंबर: 9024793611
“हर शहर में हो Feeding Hope जैसी कोशिश”
Feeding Hope Foundation की यह पहल अब एक आंदोलन बन चुकी है। स्थानीय लोग भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं—कोई आटा देता है, कोई चावल, तो कोई स्टेशनरी दान करता है।
यह मुहिम यह सिखाती है कि सेवा का कोई मोल नहीं, बस भावनाएं और प्रयास चाहिए। अगर हर शहर में ऐसे संगठन सामने आएं, तो न कोई भूखा रहेगा, न कोई बच्चा अनपढ़।