
बिहार के रोहतास जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है, जहां बिक्रमगंज प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) सुधीरकांत शर्मा और उनके कार्यालय के लेखा सहायक सुभाष कुमार को निगरानी विभाग की टीम ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया है। यह कार्रवाई भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत की गई।
सूत्रों के अनुसार, निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को एक शिक्षक की ओर से शिकायत मिली थी कि उनके कार्य को निपटाने के बदले में उनसे रिश्वत की मांग की जा रही है। इसी गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए निगरानी की टीम ने बिक्रमगंज स्थित BEO कार्यालय में छापा मारा और दोनों अधिकारियों को पकड़ लिया।
₹14,600 की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ाए
निगरानी विभाग के अधिकारियों ने बताया कि BEO सुधीरकांत शर्मा को ₹7,600 और लेखा सहायक सुभाष कुमार को ₹7,000 की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। यह रकम एक शिक्षक से सेवा संबंधित काम के बदले ली जा रही थी। गिरफ्तारी के दौरान रिश्वत की रकम अधिकारियों के पास से बरामद की गई।
टीम ने पूरी कार्रवाई को कैमरे में रिकॉर्ड किया और आवश्यक कागजी कार्रवाई के बाद दोनों आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया। अब इनसे पूछताछ जारी है और इनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है।
शिक्षा व्यवस्था में गहराया अविश्वास
यह मामला सिर्फ रिश्वतखोरी का नहीं, बल्कि शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलता है। जहां एक ओर सरकार बेहतर शिक्षा और शिक्षकों के सम्मान की बात करती है, वहीं दूसरी ओर ऐसे अधिकारी सिस्टम को गंदा कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक शिक्षा विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं लाई जाती, तब तक इस तरह की घटनाएं सामने आती रहेंगी। रिश्वत के डर से योग्य शिक्षक या तो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने से डरते हैं या सिस्टम से निराश होकर बाहर का रास्ता पकड़ते हैं।
सोशल मीडिया पर जनता की तीव्र प्रतिक्रिया
इस घटना की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। लोगों ने निगरानी टीम की कार्रवाई की सराहना करते हुए कहा कि भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा मिलनी चाहिए।
एक यूजर ने लिखा — “शिक्षा का मंदिर भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है, ऐसे अधिकारियों को सिर्फ निलंबन नहीं, जेल की हवा खिलानी चाहिए।” वहीं कई लोगों ने मांग की कि पूरे शिक्षा विभाग की कार्यशैली की जांच की जानी चाहिए।
राजनीतिक गलियारों में भी हलचल
घटना के बाद राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इस घटना को लेकर सरकार पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि भ्रष्टाचार को रोकने के दावे सिर्फ कागज़ों पर हैं।
राजद प्रवक्ता ने बयान दिया कि “अगर शिक्षा विभाग में ही इस तरह की लूट मची है, तो बाकी विभागों की स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।”
सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल
अब तक राज्य सरकार या शिक्षा विभाग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। आम जनता का मानना है कि सिर्फ गिरफ्तारी काफी नहीं है, जब तक ऐसे अधिकारियों को उदाहरण बनाकर सज़ा नहीं दी जाएगी, तब तक सिस्टम नहीं सुधरेगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ निगरानी टीम की सक्रियता
बिहार में निगरानी विभाग की सक्रियता हाल के वर्षों में बढ़ी है। पहले भी कई अधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों में रंगे हाथ पकड़े जा चुके हैं। बीते कुछ महीनों में शिक्षा, स्वास्थ्य और राजस्व विभागों में इस तरह की कई कार्रवाई हो चुकी हैं।
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो का कहना है कि वे भविष्य में भी गुप्त सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करते रहेंगे और आम जनता को भरोसा दिलाते हैं कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा।
भविष्य की राह: पारदर्शिता और जवाबदेही की ज़रूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं पर सिर्फ कार्रवाई से काम नहीं चलेगा। जरूरत है कि विभागीय प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए, जिससे किसी भी तरह की हेराफेरी की गुंजाइश न बचे।
इसके साथ ही शिक्षकों और कर्मचारियों को उनकी समस्याओं के समाधान के लिए एक पारदर्शी और त्वरित शिकायत निवारण प्रणाली भी मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष
बिक्रमगंज में BEO और लेखा सहायक की गिरफ्तारी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार हमारी प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था में गहराई तक समाया हुआ है। लेकिन साथ ही इस कार्रवाई ने एक उम्मीद भी जगाई है — कि अगर निगरानी एजेंसियां सक्रिय रहें और दोषियों को सख्त सज़ा मिले, तो व्यवस्था को बदला जा सकता है।
जनता को भी सतर्क रहकर ऐसे मामलों की सूचना देनी चाहिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। तभी एक भ्रष्टाचार-मुक्त बिहार और पारदर्शी शिक्षा व्यवस्था का सपना साकार हो सकेगा।