
पटना, 16 जुलाई 2025
बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आने वाला है। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (PK) की पार्टी जन सुराज अब पूरी ताकत से विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में जुट गई है।
पिछले कुछ वर्षों से जन संवाद और पदयात्रा के जरिए जनता से सीधा जुड़ाव बनाने में लगे प्रशांत किशोर अब एक ठोस चुनावी चुनौती पेश करने की दिशा में अग्रसर हैं। सवाल उठ रहा है—क्या PK अपने डेब्यू चुनाव में ‘केजरीवाल मॉडल’ अपनाएंगे? यानी सीमित सीटों पर दमदार उम्मीदवारों के साथ सटीक निशाना।
‘केजरीवाल मॉडल’ की चर्चा क्यों?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि PK दिल्ली की आम आदमी पार्टी की तरह बिहार में भी ‘फोकस्ड एंट्री’ रणनीति अपना सकते हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने शुरुआत में पूरी राजधानी में चुनाव न लड़कर चुनिंदा सीटों पर मजबूत प्रत्याशी उतारने का रास्ता अपनाया था और नतीजे बेहद चौंकाने वाले थे। इसी तरह PK भी बिहार की कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर अपने सबसे मजबूत उम्मीदवार उतार सकते हैं, ताकि शुरुआती दौर में विश्वसनीयता बन सके और पार्टी का आधार खड़ा हो सके।
क्या PK टक्कर देंगे तेजस्वी को?
खबरों की मानें तो प्रशांत किशोर खुद राघोपुर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, जहां से मौजूदा उपमुख्यमंत्री और RJD नेता तेजस्वी यादव विधायक हैं। यह सीधा टकराव राज्य की दो नई पीढ़ी की राजनीतिक धाराओं के बीच होगा—एक तरफ स्थापित पारिवारिक राजनीतिक विरासत और दूसरी ओर ग्राउंड पर खड़ा हुआ नया राजनीतिक आंदोलन। अगर PK ने तेजस्वी यादव के खिलाफ ताल ठोकी, तो यह बिहार चुनाव का सबसे चर्चित मुकाबला बन सकता है।
जन सुराज की तैयारी और संगठन
प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने अब तक किसी परंपरागत राजनीतिक दल की तरह कोई स्पष्ट संरचना नहीं दिखाई है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर मजबूत नेटवर्क खड़ा किया गया है। PK की पदयात्रा लगभग दो साल से बिहार के 38 जिलों के सैकड़ों ब्लॉकों में पहुंची है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी मतदाताओं तक, हर वर्ग से बातचीत कर जन सुराज ने खुद को एक “आंदोलननुमा संगठन” के तौर पर प्रस्तुत किया है।
रणनीति क्या होगी?
सूत्रों के अनुसार जन सुराज बिहार चुनाव में 50 से 60 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। सभी उम्मीदवारों का चयन स्थानीय स्तर पर जनता से सुझाव लेकर किया जा रहा है। यह प्रक्रिया पारंपरिक राजनीति से एकदम अलग है और यही PK की खास रणनीति है—लोगों को यह अहसास कराना कि वे खुद राजनीति का हिस्सा हैं, केवल वोटर नहीं।
मुख्य मुद्दे क्या होंगे?
जन सुराज की चुनावी रणनीति बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हालत, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहेगी। PK का मानना है कि बिहार के लोग जातीय राजनीति से ऊपर उठकर विकास और सुशासन को प्राथमिकता देना चाहते हैं। इसी भावनात्मक और व्यवहारिक आधार पर जन सुराज अपनी सियासी जमीन तलाश रही है।
क्या होंगे PK के सामने चुनौतियां?
जहां एक ओर PK की ‘जन आधारित राजनीति’ की रणनीति सराहनीय मानी जा रही है, वहीं चुनौतियों की भी कोई कमी नहीं है।
- पार्टी के पास अभी कोई बड़ा संगठनात्मक ढांचा नहीं है।
- संसाधनों की कमी पारंपरिक दलों के मुकाबले साफ दिखेगी।
- जातीय समीकरणों में खुद को फिट करना एक बड़ी चुनौती होगी।
- स्थापित नेताओं और दलों से प्रत्यक्ष राजनीतिक संघर्ष की स्थिति में जनता का विश्वास जीतना आसान नहीं होगा।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों ही PK को “ओवररेटेड रणनीतिकार” मानने की कोशिश करते हैं। उनका मानना है कि ज़मीनी राजनीति केवल सर्वे और डेटा से नहीं चलती। दूसरी तरफ कांग्रेस, वामपंथी दल और छोटे क्षेत्रीय संगठनों में भी जन सुराज के उदय को लेकर मिश्रित भावनाएं हैं—कहीं उम्मीद है, तो कहीं डर कि PK का उभार वोट काटने का काम कर सकता है।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर और जन सुराज पार्टी निश्चित रूप से एक नई राजनीतिक धारा की शुरुआत करने की कोशिश कर रही है। ‘केजरीवाल मॉडल’ को अपनाना उनके लिए एक समझदारी भरा कदम हो सकता है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब वे बिहार के जटिल सामाजिक, जातीय और राजनीतिक समीकरणों को बारीकी से समझकर उसे साध सकें।
PK का यह प्रयोग सफल होता है या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि बिहार की राजनीति में इस बार एक नया रंग जरूर दिखने वाला है—विकल्प का रंग, संवाद का रंग, और शायद जन सुराज का भी।