हरिद्वार/देहरादून, 21 जुलाई 2025:
सावन मास के पहले सोमवार पर उत्तर भारत के शिवालयों में भक्ति और आस्था की अनोखी छटा देखने को मिली। सुबह से ही रिमझिम बारिश के बीच शिव भक्त ‘हर-हर महादेव’ और ‘बोल बम’ के जयघोष के साथ जलाभिषेक करने शिव मंदिरों की ओर उमड़ पड़े। उत्तराखंड के हरिद्वार, कनखल, ऋषिकेश, और अन्य तीर्थ क्षेत्रों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली।

शिवालयों में श्रद्धा और भक्ति का संगम
सावन के पहले सोमवार की सुबह होते ही मंदिरों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गईं। बारिश के बावजूद भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ। कई स्थानों पर कांवड़ लेकर पहुंचे श्रद्धालुओं ने गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक किया। शिवालयों में हर तरफ भक्ति संगीत गूंज रहा था—शिव तांडव स्तोत्र, रुद्राष्टक, और ओम नमः शिवाय के मंत्र वातावरण को पवित्रता से भर रहे थे।
दक्षेश्वर महादेव: पौराणिक भूमि पर भक्तों का सैलाब
हरिद्वार के कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर में खासा उत्साह देखने को मिला। यह वही पवित्र भूमि है जहां ब्रह्मा पुत्र दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया था और जहां देवी सती ने अपने पति महादेव का अपमान न सह पाने पर यज्ञकुंड में आहुति दे दी थी। यहीं महादेव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर यज्ञ को विध्वंस किया था।
हर साल की तरह इस बार भी सावन में महादेव अपने भक्तों से वचन निभाने कनखल आते हैं। इस तीर्थभूमि का आध्यात्मिक महत्व केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह स्थान भारत की 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति का भी साक्षी रहा है।
वेद, ऋषि और यज्ञ परंपरा से जुड़ी भूमि
कनखल केवल शिवभक्ति का केंद्र नहीं, यह वह भूमि है जहां 84 हजार ऋषियों और ब्रह्मा-विष्णु जैसे देवताओं ने भी यज्ञभूमि पर अपने चरण रखे। यह वही भूमि है जहां पहली बार अरणी मंथन से यज्ञाग्नि प्रकट हुई थी। शिव और शक्ति के इस अद्वितीय संगम ने इस धरती को आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत कर रखा है।
यहां के मंदिरों में आज विशेष पूजा-अर्चना, रुद्राभिषेक और हवन-यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से आए भक्तों ने भाग लिया।
बारिश बनी आस्था की अग्निपरीक्षा
लगातार बारिश ने व्यवस्थाओं को कुछ समय के लिए प्रभावित किया, लेकिन श्रद्धालु बिना रुके कतारों में डटे रहे। छाता, रेनकोट और कांवड़ लिए हुए भक्तों की लंबी पंक्तियाँ मंदिर परिसर के बाहर तक फैली रहीं। उत्तराखंड सरकार और मंदिर प्रशासन द्वारा सुरक्षा और व्यवस्था के लिए विशेष इंतज़ाम किए गए थे। महिला श्रद्धालुओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग लाइनें बनाई गईं।
अन्य प्रमुख शिवालयों में भी रौनक
केदारनाथ, बैजनाथ, झूला देवी मंदिर (रानीखेत), तपकेश्वर महादेव (देहरादून), और चंडीघाट शिवालय में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। सभी जगहों पर स्थानीय पुजारियों और मंदिर ट्रस्टों ने विशेष पूजा का आयोजन किया। कई स्थानों पर कांवड़ यात्रा पूरी कर श्रद्धालु जल चढ़ाने पहुंचे, जिनका स्वागत स्थानीय भक्तों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने किया।
श्रद्धालु बोले—हर कष्ट मिटाते हैं भोलेनाथ
मंदिरों में मौजूद भक्तों से जब बात की गई तो उन्होंने सावन को अपने जीवन का सबसे पवित्र समय बताया। लखनऊ से आए रमेश तिवारी ने कहा,
“हर साल पहली सोमवारी पर कनखल आता हूँ। शिव का आशीर्वाद हर बार नई ऊर्जा देता है। बारिश क्या, कोई भी बाधा मुझे रोक नहीं सकती।”
दिल्ली से आए एक युवा भक्त निखिल गुप्ता ने कहा,
“सावन सोमवार को जलाभिषेक का महत्व केवल धार्मिक नहीं, यह आत्मिक शांति का माध्यम है।”
प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था
हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे तीर्थ क्षेत्रों में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उत्तराखंड पुलिस और प्रशासन ने ट्रैफिक व्यवस्था, स्वास्थ्य शिविर और पेयजल की सुविधा सुनिश्चित की थी। ड्रोन से निगरानी और CCTV कैमरों के जरिए भीड़ पर नज़र रखी गई।
निष्कर्ष: शिव की शक्ति, भक्त की आस्था
सावन सोमवार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का महापर्व है। शिव भक्तों के लिए यह महीना आत्मशुद्धि, संयम और सेवा का प्रतीक होता है। पौराणिक कथाओं से लेकर आधुनिक श्रद्धालुओं तक, सबका विश्वास एक ही स्वर में गूंजता है—हर-हर महादेव!