“हिंदुओं पर हमले का आरोप: शुभेंदु अधिकारी ने ममता सरकार को घेरा, अर्धसैनिक बलों की मांग”
कोलकाता:
पश्चिम बंगाल की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। राज्य के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को नजरअंदाज करने का गंभीर आरोप लगाया है। अधिकारी ने दावा किया कि महेशतला, मुर्शिदाबाद समेत कई जिलों में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है—जहां दुकानों और घरों को लूटा गया है, आगजनी की घटनाएं हुई हैं और पुलिसकर्मी भी हमले में घायल हुए हैं।
भाजपा नेता ने राज्य में “कानून व्यवस्था की विफलता” बताते हुए केंद्र सरकार से अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग की है ताकि “हिंदू समुदाय और पुलिसकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।”
घटनाओं की पृष्ठभूमि

शुभेंदु अधिकारी के मुताबिक, हाल ही में महेशतला, बहरामपुर और मुर्शिदाबाद के अन्य इलाकों में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं सामने आई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस हिंसा पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है, और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है।
“हिंदुओं के घरों को जलाया गया, उनकी दुकानें लूटी गईं और सड़कों पर भय का माहौल है। कई इलाकों में पुलिस खुद हमलों का शिकार बनी है, लेकिन ममता बनर्जी की सरकार चुप है,” अधिकारी ने कोलकाता में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा।
राज्य सरकार पर सीधा हमला
अधिकारी ने सीएम ममता बनर्जी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा, “राज्य सरकार तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। जब किसी विशेष समुदाय द्वारा हिंसा होती है, तो सरकार की आंखें बंद हो जाती हैं। बंगाल में हिंदू होना अब अपराध बनता जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की निष्क्रियता और राजनीतिक स्वार्थ के चलते प्रदेश में अराजकता का माहौल बन गया है।
केंद्र से हस्तक्षेप की मांग
शुभेंदु अधिकारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अपील की कि वे राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति का संज्ञान लें और प्रभावित इलाकों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती करें।
“यह अब राज्य का मुद्दा नहीं रहा, यह एक राष्ट्रीय चिंता है। जब राज्य सरकार नाकाम हो जाती है, तब केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह हस्तक्षेप करे और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे,” उन्होंने कहा।
पुलिस प्रशासन की चुप्पी
इस पूरे घटनाक्रम पर अब तक राज्य पुलिस की ओर से कोई विस्तृत बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, कुछ जिलों में अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं और इंटरनेट सेवाओं पर भी आंशिक रोक लगाई गई है।
पुलिस विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन स्थिति को नियंत्रण में लाया जा चुका है। कुछ असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे, उनके खिलाफ कार्रवाई जारी है।”
टीएमसी की प्रतिक्रिया
तृणमूल कांग्रेस ने शुभेंदु अधिकारी के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, “यह भाजपा की घबराहट है। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, वे सांप्रदायिक तनाव का कार्ड खेलते हैं। राज्य सरकार हर नागरिक की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हो।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाजपा बंगाल में स्थायी रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाना चाहती है, ताकि अपनी खोई हुई जमीन वापस पा सके।
राजनीतिक विश्लेषण: चुनावी राजनीति या सच में चिंता?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह बयानबाजी ऐसे वक्त में आई है जब बंगाल में आगामी पंचायत चुनावों की चर्चा तेज है। भाजपा राज्य में फिर से अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है और ऐसे में सांप्रदायिक तनाव जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाना उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
हालांकि, यदि हिंसा की घटनाएं सच में इतनी गंभीर हैं, तो यह राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती है और ममता बनर्जी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल खड़े करता है।
हिंदू संगठनों की प्रतिक्रियाएं
राज्य के कई हिंदू संगठन और सामाजिक समूहों ने भी हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई है। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों ने भी पश्चिम बंगाल सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर भी #SaveBengalHindus और #BengalViolence जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्रतिक्रिया
ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर इस मामले को लेकर आम जनता भी दो गुटों में बंटी हुई दिख रही है। कुछ लोग ममता सरकार की आलोचना कर रहे हैं, तो कुछ इसे भाजपा का “प्रोपेगेंडा” बता रहे हैं।
निष्कर्ष: हिंसा से ऊपर उठे राजनीति
बंगाल में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब बात लोगों की जान-माल और धार्मिक भावनाओं की आती है, तो सरकार और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे राजनीति से ऊपर उठकर शांति और सौहार्द का वातावरण सुनिश्चित करें।
यदि शुभेंदु अधिकारी के दावे सही हैं, तो यह राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर संकेत है। और अगर यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान है, तो यह भी उतना ही खतरनाक है—क्योंकि इससे समाज में डर और अस्थिरता फैलती है।