नई दिल्ली | 14 जून 2025
इज़रायल द्वारा ईरान के नतांज परमाणु संयंत्र और अन्य सैन्य ठिकानों पर किए गए हमले ने मध्य पूर्व को एक बार फिर युद्ध की आग में झोंक दिया है। इज़रायल की इस आक्रामक कार्रवाई में ईरान के कई शीर्ष वैज्ञानिक और सैन्य अधिकारी मारे गए। जवाब में, ईरान ने शाहेद-136 ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों से इज़रायल पर जबरदस्त हमला किया।
यह संघर्ष अब सिर्फ ईरान और इज़रायल तक सीमित नहीं रहा। पूरी दुनिया में यह चिंता गहराने लगी है कि क्या यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत बन सकता है? अब सबकी निगाहें रूस और चीन जैसे वैश्विक शक्तिशाली देशों पर टिकी हैं।

इज़रायल का हमला: क्यों और कैसे?
इज़रायली खुफिया एजेंसियों को आशंका थी कि ईरान नतांज में एक गुप्त परमाणु कार्यक्रम चला रहा है जो हथियार-योग्य यूरेनियम के उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस खतरे को रोकने के लिए 13 जून की रात को इज़रायली वायुसेना ने नतांज परमाणु केंद्र और अन्य सैन्य अड्डों पर सटीक और तेज़ हमले किए।
इन हमलों के बाद परमाणु संयंत्र पूरी तरह नष्ट हो गया और बड़ी संख्या में वैज्ञानिक मारे गए, जिससे ईरान में भारी आक्रोश फैल गया।
ईरान का जवाबी हमला
हमले के 12 घंटे के भीतर, ईरान ने इज़रायल की ओर 100 से ज्यादा शाहेद-136 ड्रोन और शहाब-3 जैसी बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। इज़रायल की आयरन डोम रक्षा प्रणाली ने कई मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया, लेकिन कुछ हमले तेल अवीव, हाइफा और बेर्शेबा जैसे शहरों तक पहुंच गए, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ।
ईरान ने इस हमले को “आत्मरक्षा का अधिकार” बताया और चेतावनी दी कि इज़रायल द्वारा किसी और हमले का जवाब और भी कठोर होगा।
रूस और चीन की चुप्पी या तैयारी?
इस पूरे घटनाक्रम में रूस और चीन की भूमिका अब निर्णायक मानी जा रही है। रूस ने इज़रायल के हमले की आलोचना करते हुए इसे ईरान की संप्रभुता पर हमला करार दिया है। वहीं चीन ने इसे एकतरफा सैन्य कार्रवाई बताया और शांति की अपील की है, लेकिन दोनों ही देश कूटनीतिक स्तर पर ईरान के समर्थन में नजर आ रहे हैं।
रूस और चीन अगर खुले तौर पर सैन्य या तकनीकी समर्थन देते हैं, तो यह संघर्ष सीधा अमेरिका और नाटो से टकराव में बदल सकता है।
अमेरिका और नाटो का रुख
इज़रायल का प्रमुख सहयोगी अमेरिका अब पूरी तरह से सक्रिय हो गया है। अमेरिकी नौसेना की युद्धपोतें पूर्वी भूमध्य सागर में तैनात कर दी गई हैं और नाटो ने सभी सदस्य देशों से आपात बैठक करने का आग्रह किया है।
फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश भी इज़रायल के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। अगर ये देश सामूहिक रूप से सैन्य समर्थन शुरू करते हैं, तो यह एक वैश्विक युद्ध का स्वरूप ले सकता है।
72 घंटे क्यों हैं महत्वपूर्ण?
राजनयिक सूत्रों के अनुसार, आने वाले 72 घंटे इस पूरे संघर्ष के भविष्य को तय कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, और जी-20 देश लगातार कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जमीन पर सैन्य गतिविधियां तेज हो चुकी हैं।
अमेरिका और इज़रायल ने अपने एयरस्पेस को बंद कर दिया है।
ईरान ने अपने परमाणु ठिकानों को भूमिगत मोड में शिफ्ट कर दिया है।
रूस और चीन में सैन्य बैठकों का दौर जारी है।
अगर इस बीच कोई ठोस समाधान नहीं निकलता, तो स्थिति काबू से बाहर जा सकती है।
वैश्विक असर: तेल और अर्थव्यवस्था पर संकट
इस सैन्य टकराव का असर वैश्विक बाजारों पर साफ दिखने लगा है। कच्चे तेल की कीमतें $120 प्रति बैरल के पार पहुंच चुकी हैं। एशियाई, यूरोपीय और अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई है।
युद्ध की आशंका से वैश्विक उड़ानों के रूट बदल दिए गए हैं और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को पश्चिम एशिया में काम पर रोक लगा दी है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व राजदूतों का मानना है कि यह संघर्ष विश्व राजनीति का सबसे नाज़ुक मोड़ है। यदि रूस और चीन खुलकर इस टकराव में शामिल होते हैं, तो यह तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील हो सकता है।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा, “दुनिया को अब सैन्य शक्ति नहीं, कूटनीति से रास्ता निकालना होगा। अन्यथा अगला युद्ध किसी एक देश का नहीं होगा, बल्कि पूरे विश्व का संकट बन जाएगा।”
निष्कर्ष
ईरान और इज़रायल के बीच चल रही यह लड़ाई केवल दो देशों की लड़ाई नहीं है। यह उस वैश्विक शक्ति संतुलन की परीक्षा है जो दशकों से शांति बनाए रखने का प्रयास कर रही है।
अब सबकी निगाहें रूस और चीन पर हैं। अगर वे ईरान के पक्ष में खड़े होते हैं, तो यह संघर्ष निश्चित रूप से वैश्विक बन जाएगा। आने वाले कुछ दिन इतिहास की दिशा तय कर सकते हैं।