नई दिल्ली | 16 जून 2025:
COVID-19 भले ही अब महामारी के उस चरण में नहीं है जो दुनिया को ठहराने पर मजबूर कर दे, लेकिन इसके दुष्परिणाम आज भी लाखों लोगों को परेशान कर रहे हैं। लॉन्ग कोविड — एक ऐसी स्थिति जिसमें COVID-19 के लक्षण ठीक होने के हफ्तों या महीनों बाद तक बने रहते हैं — अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है।
हाल ही में हुए एक बड़े जीनोमिक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पहली बार यह संकेत दिया है कि फेफड़ों से जुड़ा एक विशेष जीन (lung gene) उन लोगों में लॉन्ग कोविड विकसित होने की संभावना को बढ़ा सकता है, जो कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं
📊 अध्ययन की प्रमुख बातें
यह अध्ययन न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (NEJM) में प्रकाशित हुआ है और इसमें दुनियाभर के लाखों संक्रमितों के जीनोम डेटा का विश्लेषण किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ लोगों के डीएनए में मौजूद एक विशेष लंग जीन वेरिएंट लॉन्ग कोविड के लक्षणों को लंबे समय तक बनाए रखता है।

यह जीन फेफड़ों की कार्यप्रणाली से जुड़ा है, और COVID-19 के वायरस से हुई शुरुआती क्षति के बाद शरीर की रिकवरी प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
🧬 लॉन्ग कोविड क्या है?
लॉन्ग कोविड (या Post-Acute Sequelae of SARS-CoV-2 Infection — PASC) वो स्थिति है जिसमें व्यक्ति के कोरोना के मुख्य लक्षण ठीक हो जाने के बाद भी 2 महीने या उससे अधिक समय तक थकान, सांस लेने में कठिनाई, याददाश्त में गड़बड़ी, सिरदर्द, चक्कर आना, नींद न आना और डिप्रेशन जैसे लक्षण बने रहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार:
“अगर किसी मरीज में COVID-19 संक्रमण के तीन महीने के भीतर लक्षण शुरू होते हैं और कम-से-कम दो महीने तक बिना किसी अन्य कारण के बने रहते हैं, तो इसे लॉन्ग कोविड कहा जाता है।”
🔍 शोध के निष्कर्ष
अमेरिका, यूरोप और एशिया के 25 से अधिक शोध संस्थानों द्वारा किए गए इस साझा अध्ययन में लगभग 60 लाख लोगों के जीनोमिक डेटा का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि एक खास लंग जीन वेरिएंट (gene variant related to lung tissue repair) उन व्यक्तियों में ज्यादा सक्रिय था जिन्होंने लॉन्ग कोविड के लक्षण अनुभव किए।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. लिआम हेंडरसन का कहना है:
“हमने देखा कि जिन लोगों में यह विशेष लंग जीन वेरिएंट था, उनमें रिकवरी धीमी थी और वे महीनों तक थकान, ब्रेन फॉग और सांस की समस्या से जूझते रहे।”
🧠 दिमाग और फेफड़े: दो मुख्य प्रभावित अंग
शोध में यह भी पाया गया कि लॉन्ग कोविड केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता। यह शरीर के न्यूरोलॉजिकल सिस्टम, यानी दिमाग, तंत्रिका तंत्र और मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली को भी प्रभावित करता है।
जिन लोगों में यह विशेष जीन सक्रिय था, वे ब्रेन फॉग, चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से ज्यादा प्रभावित थे।
🧪 जीन आधारित उपचार की संभावना?
इस शोध से एक नई दिशा खुली है — क्या लॉन्ग कोविड का इलाज जीन थैरेपी या पर्सनलाइज्ड मेडिसिन से संभव है?
हालांकि अभी तक कोई निश्चित दवा लॉन्ग कोविड के लिए नहीं बनी है, लेकिन जीन की भूमिका समझने से वैज्ञानिक अब लक्षित इलाज (targeted treatment) की तरफ बढ़ सकते हैं।
डॉ. कविता नायर, वायरोलॉजिस्ट, AIIMS दिल्ली, कहती हैं:
“अगर हम जान सकें कि कौन से जीन लॉन्ग कोविड के पीछे जिम्मेदार हैं, तो हम जोखिम वाले लोगों की पहले से पहचान कर सकते हैं और उनके लिए विशेष निगरानी और इलाज की योजना बना सकते हैं।”
🩺 भारत में लॉन्ग कोविड की स्थिति
भारत में भी लॉन्ग कोविड एक गंभीर समस्या बन चुकी है। ICMR की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 20% COVID संक्रमितों ने कम से कम एक महीने बाद भी लक्षण अनुभव किए। ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा और ज्यादा है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाएं हैं।
AIIMS और अन्य मेडिकल कॉलेजों ने अब लॉन्ग कोविड के लिए विशेष क्लीनिक शुरू कर दिए हैं।
🗣 मरीजों के अनुभव
स्वाति मिश्रा (33), मुंबई की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बताती हैं:
“मेरे COVID संक्रमण को छह महीने हो चुके हैं लेकिन अब भी हर दोपहर थकान से चक्कर आने लगते हैं। MRI में सब सामान्य आया लेकिन ब्रेन फॉग और सिरदर्द ठीक नहीं हो रहे।”
🌍 वैश्विक परिप्रेक्ष्य
लॉन्ग कोविड की समस्या अब पूरी दुनिया में स्वास्थ्य प्रणालियों के सामने एक चुनौती है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने इसे “Disabling Condition” मानते हुए विशेष फंड और सुविधाएं तय की हैं।
WHO के अनुसार, दुनियाभर में करीब 6 करोड़ लोग लॉन्ग कोविड से प्रभावित हो सकते हैं।
- ✅ समाधान और सुझाव
- विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- लॉन्ग कोविड से बचने के लिए कोरोना वैक्सीन और बूस्टर डोज अहम हैं
- संक्रमित होने के बाद शरीर को पर्याप्त आराम देना जरूरी है
- मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है
- और अब, जीनोमिक टेस्टिंग से संभावित रिस्क की पहचान की जा सकती है
📌 निष्कर्ष
लॉन्ग कोविड का इलाज भले ही अभी पूरी तरह उपलब्ध न हो, लेकिन अब हम इसकी जैविक और आनुवंशिक जड़ें समझने लगे हैं।
फेफड़ों के एक जीन से जुड़ा यह बड़ा खुलासा चिकित्सा विज्ञान के लिए एक नई दिशा साबित हो सकता है।
शायद भविष्य में हम उन लोगों की पहचान पहले से कर सकेंगे, जिन्हें लॉन्ग कोविड होने की ज्यादा संभावना है — और समय रहते इलाज शुरू कर सकेंगे।