
पटना, 17 जून 2025 – बिहार में बीते 24 घंटों में आकाशीय बिजली ने 14 लोगों की जान ले ली है, जिससे कई जिले शोक में डूब गए हैं। मंगलवार को हुई इन घटनाओं में कई अन्य लोग घायल भी हुए हैं, जिसने मानसून के दौरान बेहतर जागरूकता और सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है।
स्थानीय प्रशासन के अनुसार, मौतें कई जिलों में हुईं, जिनमें बक्सर, पूर्णिया, चंपारण और कटिहार सबसे ज्यादा प्रभावित रहे।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस सप्ताह की शुरुआत में क्षेत्र के लिए गरज-चमक और बिजली गिरने की चेतावनी जारी की थी, लेकिन इस त्रासदी की व्यापकता ने निवासियों और अधिकारियों दोनों को झकझोर दिया है। बिहार में मानसून से संबंधित बिजली गिरने की घटनाएं असामान्य नहीं हैं, क्योंकि यह राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति और मौसम के पैटर्न के कारण ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहता है।
हालांकि, इतने कम समय में इतनी मौतों ने खतरे की घंटी बजा दी है।भारी नुकसानरिपोर्ट्स के अनुसार, बक्सर में सबसे ज्यादा चार मौतें हुईं, इसके बाद पूर्णिया और चंपारण में तीन-तीन मौतें दर्ज की गईं। कटिहार में भी तीन लोगों की जान गई, जबकि सारण, कैमूर, सीतामढ़ी और भागलपुर में एक-एक मौत की सूचना है। मृतकों में ज्यादातर किसान थे, जो खुले खेतों में काम कर रहे थे—मानसून के दौरान यह एक आम स्थिति है, जब कृषि गतिविधियां चरम पर होती हैं।बिजली गिरने की घटनाएं अक्सर लोगों को अचानक पकड़ लेती हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां मौसम की रियल-टाइम जानकारी तक पहुंच सीमित है। कई पीड़ित उस समय बाहर थे जब गरज-चमक के साथ तूफान आया, और उन्हें समय पर आश्रय नहीं मिल सका। सारण में एक 35 वर्षीय किसान की मौत तब हुई जब वह अपने खेत की देखभाल कर रहा था, जिससे उसका परिवार सदमे में है। इसी तरह, पूर्णिया में खुले खेत में काम कर रहे मजदूरों के एक समूह को प्रकृति के प्रकोप का सामना करना पड़ा, जिसमें तीन लोगों की तुरंत मौत हो गई।आधिकारिक प्रतिक्रिया और जनता का आक्रोशबिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अपनी संवेदना व्यक्त की है और प्रभावित परिवारों के लिए तत्काल राहत उपायों की घोषणा की है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमें बिजली गिरने से हुई मौतों से गहरा दुख है। मृतकों के परिवारों को राज्य के नियमों के अनुसार वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।” हालांकि, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ने स्थानीय लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है, जो भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे और जागरूकता अभियानों की मांग कर रहे हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में बिजली गिरने के लिए एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की कमी है, जो कुछ अन्य राज्यों में लागू की गई है, जैसे कि बिजली का पता लगाने वाले नेटवर्क और मोबाइल अलर्ट। पटना में रहने वाले मौसम विज्ञानी डॉ. अनिल कुमार ने कहा, “रियल-टाइम में बिजली गिरने की भविष्यवाणी करने और चेतावनी देने की तकनीक मौजूद है। सरकार को ऐसी प्रणालियों में निवेश करने और लोगों को सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है।”बिहार क्यों है इतना असुरक्षित?बिहार में बिजली गिरने की संवेदनशीलता इसकी भौगोलिक स्थिति और जलवायु से जुड़ी है। गंगा के मैदानों में स्थित यह राज्य तीव्र मानसून गतिविधि का अनुभव करता है, जिसके कारण क्यूमुलोनिम्बस बादल बनते हैं—जो गरज-चमक और बिजली उत्पन्न करने के लिए जाने जाते हैं। राज्य की ज्यादातर ग्रामीण आबादी, साथ ही बिजली-सुरक्षित संरचनाओं की कमी, खतरे को और बढ़ा देती है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल बिजली गिरने से काफी संख्या में मौतें होती हैं, और बिहार अक्सर इस सूची में शीर्ष पर रहता है।
2023 में ही राज्य में बिजली गिरने से 300 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।किसान, जो बिहार की कार्यशक्ति का बड़ा हिस्सा हैं, विशेष रूप से जोखिम में हैं। कई लोग मानसून के दौरान खुले खेतों में काम करते हैं, अक्सर तत्काल आश्रय तक पहुंच के बिना। इसके अलावा, सुरक्षा उपायों की जानकारी की कमी—जैसे कि तूफान के दौरान खुले स्थानों, ऊंचे पेड़ों और धातु की वस्तुओं से बचना—उच्च मृत्यु दर में योगदान देती है।हानि और जीवित रहने की कहानियांबक्सर में मृतकों में 42 वर्षीय रमेश यादव भी शामिल थे, जो तीन बच्चों के पिता थे। वह अपने खेतों से घर लौट रहे थे जब बिजली गिरी। उनकी पत्नी सुनीता देवी ने उस भयावह पल को याद करते हुए कहा, “यह अचानक हुआ। आसमान अंधेरा था, लेकिन हमें इसकी उम्मीद नहीं थी। वह एक पल में चले गए।” चंपारण में, एक 14 वर्षीय लड़के ने बिजली गिरने से बच तो लिया, लेकिन उसे गंभीर जलन हुई, जिससे उसका परिवार चिकित्सा खर्चों से जूझ रहा है।हानि और जीवित रहने की ये कहानियां बिहार के ग्रामीण समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों की भयावह तस्वीर पेश करती हैं। हालांकि सरकार ने मुआवजे का वादा किया है, लेकिन कई परिवार अपने प्रियजनों को खोने के भावनात्मक और वित्तीय बोझ से जूझ रहे हैं।कार्रवाई की जरूरतविशेषज्ञ और कार्यकर्ता इस मुद्दे से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की मांग कर रहे हैं। सबसे पहले, बेहतर बुनियादी ढांचे की जरूरत है, जैसे कि कमजोर क्षेत्रों में बिजली रॉड की स्थापना और सामुदायिक आश्रयों का निर्माण जहां लोग तूफान के दौरान शरण ले सकें। दूसरा, जनता को बिजली की सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियानों को बढ़ाना होगा।
साधारण उपाय—जैसे खुले खेतों से बचना, पेड़ों के नीचे न खड़ा होना, और तूफान के दौरान घर के अंदर रहना—जान बचा सकते हैं।इसके अलावा, तकनीक का एकीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ऐप्स और एसएमएस अलर्ट जो गरज-चमक और बिजली की गतिविधि पर रियल-टाइम अपडेट प्रदान करते हैं, लोगों को निवारक कार्रवाई करने में मदद कर सकते हैं। ओडिशा जैसे कुछ राज्यों ने ऐसी प्रणालियों को लागू करके बिजली से होने वाली मौतों को सफलतापूर्वक कम किया है, और बिहार भी इसी मॉडल से लाभ उठा सकता है।सरकारी पहल और चुनौतियांबिहार सरकार ने हाल के वर्षों में इस मुद्दे को हल करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। 2022 में, राज्य ने ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ के पेड़ लगाने का अभियान शुरू किया, क्योंकि वे प्राकृतिक बिजली चालक के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि, यह पहल धीमी गति से आगे बढ़ी है, और कई गांव अभी भी असुरक्षित हैं। इसके अलावा, वित्तीय बाधाएं और नौकरशाही बाधाओं ने बिजली का पता लगाने वाले नेटवर्क जैसे अधिक उन्नत समाधानों को लागू करने में बाधा डाली है।केंद्र सरकार ने भी बिजली को प्राकृतिक आपदा के रूप में मान्यता दी है, जिससे प्रभावित परिवार राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के तहत मुआवजे के पात्र हैं। हालांकि, कार्यकर्ताओं का तर्क है कि केवल मुआवजा पर्याप्त नहीं है—निवारक उपाय मौतों को कम करने की कुंजी हैं।भविष्य की ओरजब बिहार 14 लोगों की मौत का शोक मना रहा है, यह त्रासदी तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता की एक कठोर याद दिलाती है। राज्य अपनी जनता के लिए ऐसी घटनाओं को बार-बार होने वाला दुःस्वप्न नहीं बनने दे सकता। मानसून का मौसम अभी खत्म होने से दूर है, इसलिए अधिकारियों को कमजोर समुदायों की रक्षा के लिए तेजी से कदम उठाने और आगे की जानमाल की हानि को रोकने की जरूरत है।