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इंदौर में सादगी की नई मिसाल: जैन-अग्रवाल समाज ने रोका शादियों में फिजूलखर्ची का रास्ता!

इंदौर के जैन-अग्रवाल समाज ने दिखाया सादगी का रास्ता, शादियों में फिजूलखर्ची पर लगाम

इंदौर, मध्य प्रदेश।
बदलते वक्त के साथ समाज में विवाह समारोहों का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। इंदौर के जैन और अग्रवाल समाज ने एक ऐसी अनुकरणीय पहल की है, जो न सिर्फ समाज में एक नई सोच को जन्म दे रही है, बल्कि फिजूलखर्ची पर भी एक बड़ी रोक लगाने का संदेश दे रही है।

अब इन दोनों समाजों के परिवार शादी जैसे आयोजनों में केवल 6 से कम व्यंजन ही परोसेंगे। इससे अधिक व्यंजन परोसने पर मेहमान केवल आशीर्वाद देंगे लेकिन भोजन ग्रहण नहीं करेंगे। इसके अलावा शादी के कार्ड्स का चलन भी खत्म किया गया है—अब केवल डिजिटल निमंत्रण जैसे व्हाट्सएप व कॉल के जरिए ही शादी में बुलाया जाएगा।

सादगी की मिसाल बनी इंदौर की यह पहल

जैन और अग्रवाल समाज की इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य समाज में अनावश्यक खर्च पर लगाम लगाना है। समाज के वरिष्ठजनों ने मिलकर यह निर्णय लिया है कि अब शादी जैसे आयोजनों में खर्च का दिखावा न हो, जिससे मध्यम वर्गीय और निम्न आयवर्ग के लोग भी समान रूप से समारोह का आयोजन कर सकें।

विवाह पूर्व आयोजित होने वाले संगीत, मेहंदी, हल्दी और अन्य कार्यक्रमों पर भी रोक लगाने का सुझाव दिया गया है। समाज की बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि विवाह को धार्मिक और पारंपरिक सीमाओं में ही सीमित रखा जाए।

कैसे होगा यह बदलाव लागू?

समाज के संगठन स्तर पर एक निगरानी समिति बनाई गई है, जो यह सुनिश्चित करेगी कि सदस्य परिवार इस निर्णय का पालन करें। समिति के अनुसार, यदि कोई परिवार इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उनके समारोह में समाज के अन्य लोग भोजन नहीं करेंगे और सिर्फ आशीर्वाद देकर लौट जाएंगे।

निमंत्रण के लिए समाज की आईटी टीम व्हाट्सएप, ईमेल और मोबाइल कॉल्स का उपयोग कर रही है। इससे न सिर्फ पर्यावरण को फायदा होगा (कागज की बचत), बल्कि अनावश्यक छपाई खर्च से भी मुक्ति मिलेगी।

समाज का संदेश: दिखावे से दूर, मूल्यों की ओर लौटें

जैन समाज के वरिष्ठ सदस्य मनोहरलाल जैन ने कहा, “आज विवाह समारोहों में जो दिखावा हो रहा है, वह हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता। हमारी परंपरा सादगी की रही है। यह पहल समाज को मूल्यों की ओर लौटने का निमंत्रण है।”

अग्रवाल समाज के अध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल ने बताया, “हमने महसूस किया कि आज लोग शादियों में कर्ज लेकर खर्च कर रहे हैं। यह व्यवस्था समाज के आर्थिक संतुलन को बिगाड़ रही है। अब समय आ गया है कि हम दिखावे से बाहर निकलें और सादगी को अपनाएं।”

समाज के युवाओं की मिली-जुली प्रतिक्रिया

जहां बुजुर्ग इस फैसले से खुश हैं, वहीं युवाओं में इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ युवा इसे एक बेहतरीन कदम मान रहे हैं जो भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत देगा, वहीं कुछ इसे पारंपरिक सोच मानकर अपनी नाराजगी भी जता रहे हैं।

इंदौर की ही रहने वाली श्रद्धा जैन कहती हैं, “यह पहल समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती है, लेकिन इसके लिए सभी को साथ मिलकर काम करना होगा।” वहीं राहुल अग्रवाल का कहना है, “शादी जिंदगी में एक ही बार होती है, लोग उसे यादगार बनाना चाहते हैं, इसलिए सख्त नियम थोड़े मुश्किल हो सकते हैं।”

बिहार में उठा मजाक: अमीर बिहारी बना सोशल ट्रोल

जहां एक ओर इंदौर के समाजों में सादगी अपनाने की पहल हो रही है, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इस पर व्यंग्य भी हो रहा है। एक वायरल मैसेज में कहा गया:

“हम बिहारी लोग अमीर हैं, हम ऐसे फालतू ज्ञान को नहीं मानते, शादी में जमकर खर्च करेंगे… चाहे कर्ज में ही क्यों न डूब जाएं!”

इस व्यंग्य भरे संदेश को कुछ लोग व्यर्थ का दिखावा और सामाजिक असंवेदनशीलता मान रहे हैं, तो कुछ इसे समाज की कटु सच्चाई के रूप में देख रहे हैं।

क्यों जरूरी है यह बदलाव?

विवाह भारतीय संस्कृति का पवित्र बंधन है, लेकिन समय के साथ यह एक प्रतियोगिता बन गई है—कौन ज्यादा खर्च करता है, कौन बड़ी पार्टी देता है, किसके खाने में कितने व्यंजन हैं। इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर अनावश्यक दबाव बनता है।

विवाह के नाम पर लिया गया कर्ज कई परिवारों को वर्षों तक आर्थिक परेशानियों में डाल देता है। इसलिए इंदौर की यह पहल पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन सकती है।

भविष्य की ओर एक नई दिशा

इंदौर के जैन और अग्रवाल समाज ने एक आदर्श स्थापित किया है। यह पहल केवल एक नियम नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता को बदलने की एक कोशिश है। अगर देश के अन्य समाज भी इस दिशा में कदम बढ़ाएं, तो विवाह समारोह फिर से अपने मूल स्वरूप में लौट सकते हैं—जहां प्रेम, सम्मान और सादगी ही सबसे बड़ा प्रदर्शन होगा।


निष्कर्ष

इंदौर के जैन और अग्रवाल समाज की यह पहल हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या दिखावे से समाज का भला होता है या सादगी अपनाने से? समय की मांग है कि हम आर्थिक समझदारी दिखाएं, सामाजिक दबाव से ऊपर उठें और ऐसी परंपराएं शुरू करें, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणादायक बनें।

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