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IIT खड़गपुर में एक साल में 4 सुसाइड, छात्र बोले—कॉलेज और पैरेंट्स दोनों से दबाव

खड़गपुर/कोलकाता (14 जुलाई, 2025):
देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में गिने जाने वाले IIT खड़गपुर से एक बार फिर चिंताजनक खबर सामने आई है। पिछले एक साल के अंदर 4 छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद संस्थान की कार्यप्रणाली, छात्रों पर बढ़ते शैक्षणिक और पारिवारिक दबाव, और मानसिक स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

हाल ही में चौथे छात्र की मौत ने न केवल संस्थान को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि देशभर में बहस छेड़ दी है कि आखिर इन मौतों का जिम्मेदार कौन है। छात्र संगठनों, परिजनों और विशेषज्ञों ने संस्थान के भीतर की मानसिकता, काउंसलिंग व्यवस्था, और प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल उठाए हैं।

छात्रों का कहना है कि कॉलेज का माहौल बेहद प्रतिस्पर्धी और दबावपूर्ण हो गया है। पढ़ाई का तनाव, प्लेसमेंट की दौड़, और निरंतर परफॉर्म करने की अपेक्षा उन्हें मानसिक रूप से तोड़ रही है। एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यहां सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि अपने परिवार की उम्मीदों का बोझ भी उतना ही भारी होता है। अगर कोई थोड़ा कमजोर हो गया तो उसे ‘फिट नहीं है’ कहकर अकेला छोड़ दिया जाता है।”

कुछ छात्रों ने यह भी बताया कि कई बार पैरेंट्स की तरफ से भी करियर को लेकर अत्यधिक दबाव होता है, जो मानसिक स्थिति को और बिगाड़ देता है। “हम यहां केवल किताबों से नहीं लड़ते, बल्कि खुद से भी लड़ते हैं,” एक अन्य छात्र ने कहा।

वहीं, जिन छात्रों ने आत्महत्या की है, उनके परिजनों ने संस्थान पर सवाल उठाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है। एक छात्र के पिता ने कहा, “हमारा बेटा हंसमुख था, कभी तनाव की बात नहीं की। हमें यकीन है कि कुछ ऐसा ज़रूर हुआ है जिसने उसे इस हद तक तोड़ दिया। जांच होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आए।”

इस पूरे घटनाक्रम के बाद IIT खड़गपुर प्रशासन ने एक औपचारिक बयान में दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशील और गंभीर हैं। संस्थान में मेंटल हेल्थ काउंसलर, हेल्पलाइन, और वर्कशॉप्स जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यवस्थाएं काफी नहीं हैं और व्यवहारिक रूप से छात्रों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अर्चना मुखर्जी कहती हैं, “प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला पाने के बाद भी छात्र पूरी तरह सुरक्षित नहीं होते। वहां की संस्कृति, परफॉर्मेंस प्रेशर और ‘सफलता का खांचा’ कई छात्रों को मानसिक रूप से कुचल देता है। ज़रूरी है कि ऐसे संस्थानों में छात्रों के लिए संवेदनशील संवाद और भावनात्मक समर्थन की व्यवस्था की जाए।”

इसी बीच राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) और AISA जैसे छात्र समूहों ने संस्थान के बाहर प्रदर्शन कर स्वतंत्र जांच और जवाबदेही की मांग की है। उनका आरोप है कि IIT जैसे संस्थान केवल अकादमिक उपलब्धियों पर ध्यान देते हैं, लेकिन छात्रों की भावनात्मक ज़रूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं।

सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक जांच की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वे रिपोर्ट तलब कर सकते हैं।

IIT खड़गपुर में बढ़ती आत्महत्याओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य अब संस्थान का ‘पर्सनल इशू’ नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकट बन चुका है, जिससे निपटने के लिए मजबूत और संवेदनशील नीति की आवश्यकता है।

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