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IIT खड़गपुर निदेशक ने कहा—‘कैंपस मदर्स’ पेशेवर काउंसलर्स का विकल्प नहीं….

खड़गपुर (14 जुलाई, 2025):
IIT खड़गपुर में हाल ही में शुरू की गई ‘कैंपस मदर्स’ पहल को लेकर उठे सवालों के बीच संस्थान के निदेशक डॉ. सुमन चक्रवर्ती ने सोमवार को स्पष्ट किया कि यह योजना मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की जगह नहीं लेगी, बल्कि उनका सहयोग करेगी।

यह पहल छात्रों के समग्र कल्याण के लिए बनाए गए पाँच-सूत्रीय कार्यक्रम का एक हिस्सा है, न कि कोई एकल या विकल्पात्मक समाधान।

डॉ. चक्रवर्ती ने कहा,
“कैंपस मदर्स पहल एक भावनात्मक सहारा देने की कोशिश है, जो छात्रों को एक गैर-आधिकारिक, मातृवत स्पर्श प्रदान कर सके। यह पेशेवर परामर्शदाताओं के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक पूरक के तौर पर कार्य करेगी।”

क्या है ‘कैंपस मदर्स’ योजना?

‘कैंपस मदर्स’ योजना के तहत संस्थान ऐसे महिला स्वयंसेवकों (फैकल्टी या स्टाफ) की पहचान कर रहा है, जो छात्रों को अनौपचारिक रूप से भावनात्मक समर्थन दे सकें। उद्देश्य है कि छात्र जब मानसिक दबाव में हों, तो वे किसी ऐसे शख्स से बात कर सकें जिसे वे सहजता से भरोसा कर सकें—बिना किसी औपचारिक प्रक्रिया या मानसिक स्वास्थ्य टैग के।

आलोचनाएं भी हुईं तेज

हालांकि इस योजना की घोषणा के बाद कई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और छात्रों ने इस पहल को लेकर चिंता जताई है। कुछ का कहना है कि यह योजना ‘जेंडर्ड अप्रोच’ को बढ़ावा देती है, जिसमें केवल महिलाओं को ‘देखभाल करने वाली’ भूमिका में रखा जा रहा है, जबकि छात्रों को पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह पहल असल में उन संरचनात्मक मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है जो IIT जैसे संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं—जैसे अत्यधिक शैक्षणिक दबाव, प्रतिस्पर्धात्मक संस्कृति और काउंसलिंग सेवाओं की अनुपलब्धता।

संस्थान का पक्ष: यह केवल एक स्तंभ है, संपूर्ण समाधान नहीं

इन आलोचनाओं के जवाब में डॉ. चक्रवर्ती ने कहा कि ‘कैंपस मदर्स’ न तो विशेषज्ञ काउंसलिंग का विकल्प है और न ही इसका उद्देश्य लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा,
“हमारी पूरी रणनीति पांच स्तरों पर आधारित है—पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, सहकर्मी सहायता, डिजिटल हेल्थ मॉनिटरिंग, अकादमिक लचीलापन, और भावनात्मक समर्थन—जिसमें ‘कैंपस मदर्स’ केवल एक हिस्सा है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि पुरुष फैकल्टी या स्टाफ भी इस तरह की ‘कैंपस गार्जियन’ या ‘सहारा’ जैसी भूमिकाओं में भागीदारी कर सकते हैं।

छात्रों की प्रतिक्रिया

छात्रों के बीच इस पहल को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ छात्र इसे एक सकारात्मक प्रयास मानते हैं, जो इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट को मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ता है, वहीं कई छात्रों ने कहा कि जब तक काउंसलिंग सेवाएं मजबूत नहीं होंगी, तब तक ऐसे भावनात्मक समर्थन केवल अस्थायी राहत ही दे पाएंगे।

एक पीएचडी छात्र ने कहा,
“अगर कॉलेज ईमानदारी से चाहता है कि हम मानसिक रूप से मजबूत रहें, तो हमें पेशेवर थेरेपी और तनाव रहित अकादमिक माहौल की जरूरत है। एक ‘कैंपस मदर’ से बात करना तब फायदेमंद होगा जब बाकी व्यवस्थाएं पहले से मजबूत हों।”

सामाजिक दृष्टिकोण से विचार

समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह पहल अगर ठीक से लागू की गई, तो यह छात्रों में अकेलेपन और अवसाद की भावना को कम करने में सहायक हो सकती है। लेकिन इसे लैंगिक संवेदनशीलता और प्रोफेशनल सपोर्ट के साथ संतुलित रखना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

IIT खड़गपुर का ‘कैंपस मदर्स’ कार्यक्रम एक मानवीय पहल है जो छात्रों को संस्थान के भीतर ही एक सुरक्षित भावनात्मक स्पेस देने की कोशिश करता है। हालांकि इस योजना की आलोचनाएं भी अपने स्थान पर उचित हैं, खासकर जब बात मानसिक स्वास्थ्य जैसी गंभीर समस्या की हो। निदेशक द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से यह साफ है कि यह योजना एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य रणनीति का हिस्सा है, न कि एक विकल्प।

अब देखने की बात यह होगी कि IIT KGP कैसे इसे प्रभावी रूप से लागू करता है, और क्या यह सच में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण में कोई ठोस परिवर्तन ला पाता है या नहीं।

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