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OBC सूची पर हाईकोर्ट की रोक: ममता सरकार को झटका

कोलकाता, 18 जून 2025। पश्चिम बंगाल सरकार की 140-उपसमूहों वाली नई अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सूची पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि सूची तैयार करने की प्रक्रिया पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 के मानकों पर खरी नहीं उतरती और पूर्व आदेशों का भी उल्लंघन करती है। यह स्‍टे 31 जुलाई 2025 तक प्रभावी रहेगा, यानी उस तारीख तक राज्य सरकार सूची लागू नहीं कर सकेगी।

140 उपसमूहों की नयी सूची—80 मुस्लिम, 60 गैर-मुस्लिम

राज्य सरकार ने पिछली 113-समूहों की सूची में बदलाव करते हुए यह नई अधिसूचना जारी की थी। नयी सूची में 80 मुस्लिम और 60 गैर-मुस्लिम उपसमूह जोड़े गये थे। अदालत ने प्रथम दृष्ट्या पाया कि इस बदलाव में सांठ-गांठ और प्रक्रियागत त्रुटियां हैं, जिनकी वजह से सूची पर रोक लगाना जरूरी है।

मुद्दे की पृष्‍ठभूमि—मई 2024 का फैसला और अदालत की सख्‍ती

मई 2024 में भी यही डिवीजन बेंच राज्य की पुरानी OBC सूची—जिसमें 2010 से 2012 के बीच जोड़े गये 1.2 मिलियन से अधिक प्रमाणपत्र शामिल थे—को अवैध घोषित कर चुकी है। अदालत ने उस वक़्त “राजनीतिक लाभ” के इरादे से आरक्षण बांटने पर कड़ी टिप्पणी की थी और सरकार को वैधानिक प्रक्रिया से नयी सूची तैयार करने का निर्देश दिया था।

अदालत की ताज़ा टिप्पणियां—“कानून से ऊपर कोई नहीं”

दो-न्यायाधीशीय पीठ (न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती व न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा) ने पूछा कि आयोग की सिफारिशों के बगैर कार्यपालिका ने कैसे अधिसूचना जारी की।

पीठ ने संकेत दिया कि केवल धर्म‐आधारित आंकड़ों पर OBC वर्गीकरण संवैधानिक समानता के सिद्धांत से टकराता है।

अदालत ने राज्य को जवाब दाखिल करने और 31 जुलाई को विस्तृत सुनवाई के लिये तारीख मुकर्रर की।

BJP का हमला—“मुस्लिम तुष्टिकरण की कोशिश नाकाम”

राज्‍य BJP अध्‍यक्ष सुकांत मजूमदार ने फैसले का स्‍वागत करते हुए कहा,

“ममता बनर्जी सरकार ने अल्पसंख्‍यक वोट बैंक साधने के लिये पिछड़ों का हक छीना। अदालत ने इस अनैतिक चाल पर ब्रेक लगा दिया।”

उन्होंने मांग की कि सरकार OBC आयोग का पुनर्गठन करे और आरक्षण की पूरी प्रक्रिया लोकसभा चुनाव के बाद किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराए।

TMC की दलील—“सर्वे कोर्ट-निर्देशों के अनुरूप, जल्‍द अपील करेंगे”

तृणमूल कांग्रेस के राज्‍य प्रवक्‍ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि सूची आर्थिक व सामाजिक आँकड़ों पर आधारित है, “कोई धर्म‐विशेष को फायदा पहुँचाने का इरादा नहीं।” राज्य सरकार शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करेगी।

कानूनी पेच—अब आगे क्‍या?

तारीख प्रक्रिया संभावित पर‍िणाम

17-18 जून 2025 कलकत्ता HC का अंतरिम स्‍टे सूची निलंबित
30 जून 2025 (संभावित) राज्य की SLP सुप्रीम कोर्ट में त्‍वरित राहत पर सुनवाई
31 जुलाई 2025 HC में अगली विस्‍तृत सुनवाई स्‍टे बढ़ सकता है या हट सकता है

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संवैधानिक परिप्रेक्ष्‍य—क्या कहती है आरक्षण की रूपरेखा?

  1. केंद्रीय ओबीसी सूची—अनु. 340 व 341 के तहत संसद के अधिकार क्षेत्र में।
  2. राज्य सूचियाँ—राज्य विधानसभाएँ तैयार करती हैं, लेकिन प्रक्रिया में आयोग की सिफ़ारिश अनिवार्य है।
  3. धर्म आधारित आरक्षण—सुप्रीम कोर्ट ने 2005 (म. प्र. बनाम कन्हैयालाल) और 2014 (इंद्रा साहनी अनुपालन मामले) में दो-टूक कहा कि “धर्म किसी भी आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।”

कलकत्ता HC का ताज़ा आदेश इन्हीं संवैधानिक कसौटियों पर खरा उतरने की कसौटी तय करता है।

राजनीतिक निहितार्थ—2026 विधानसभा की ओर नज़र

TMC रणनीति: अल्पसंख्‍यक + ओबीसी समीकरण मज़बूत कर BJP-Left गठजोड़ को रोकना।

BJP वर्णन: “तुष्टिकरण” बनाम “सबका साथ, सबका विकास” की बहस तेज़।

Left-Congress मोर्चा: फैसले को संवैधानिक न्याय की जीत बताते हुए TMC-BJP दोनों पर निशाना—“धर्म की राजनीति नहीं रोजगार की जरूरत।”

ऐसे में अदालत का स्‍टे 2026 के चुनावी विमर्श को नई दिशा दे सकता है।

सामाजिक आकलन—किसे कितना असर?

मुस्लिम पिछड़े वर्ग: 80 समूहों का आरक्षण अधर में, शिक्षा-रोज़गार योजनाओं में अनिश्चितता।

गैर-मुस्लिम ओबीसी: विशेषकर कुर्मी, तेली, मह‍िष्‍या समुदाय—पहले से मौजूदा आरक्षण में बदलते मानदंड से उलझन।

शक्तिशाली जाति-आधारित यूनियन: चुनावी साल में मुद्दे को आंदोलन में बदल सकती हैं।

समाजशास्त्री मानते हैं कि आरक्षण को अचानक बदलना ground-level beneficiaries के लिये सबसे अधिक असमंजस खड़ा करता है।

विशेषज्ञों की राय—“पारदर्शिता व डेटा-ड्रिवन अप्रोच ज़रूरी”

एनसीओबीसी (राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग) के पूर्व सदस्य प्रो. एच. के. भट्टाचार्य कहते हैं,

“राज्यों को चाहिए कि वे कास्ट-सेंसस आधारित सर्वे कर वार्ड-स्तर से आंकड़े जुटाएँ ताकि सूची रौपवे की तरह ऊपर से न थोप दी जाए।”

वह सुझाव देते हैं कि केंद्र‐राज्य के डेटा शेयरिंग पोर्टल विकसित कर आरक्षण मानदंडों में पारदर्शिता लाई जा सकती है।

निष्कर्ष—कायदे-कानून और राजनीति की दोहरी कसौटी

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह अंतरिम आदेश कानूनी प्रक्रिया के पालन का सख़्त संदेश देता है—आरक्षण चाहे धर्म, जाति या वर्ग किसी भी आधार पर हो, उसे संवैधानिक संतुलन व न्यायिक निगरानी का सामना करना होगा।

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो फैसला ममता बनर्जी सरकार के लिए तत्काल झटका है और BJP को वोटर नैरेटिव बनाने के लिए नयी ऑक्‍सीजन। लेकिन अंतिम फैसला 31 जुलाई या सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही सामने आएगा।

तब तक के लिए राज्य के करोड़ों पिछड़े वर्ग के लोगों की आरक्षण-अधिकार की अनिश्चितता स्थगित है—और यह सवाल भी कि “संतुलित सामाजिक न्याय” की राह में कानून और राजनीति कहाँ एक-दूसरे से टकराते हैं।

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